Chemical weapons (रसायनिक हथियार)

   Chemical weapons (रसायनिक हथियार)

' पूरी दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है ' अगर हम ऐसा कहते है तो गलत नहीं होगा। दुनिया में बहुत सारे हथियार है सभी हथियारों से नुकसान भी अलग- अलग  तरह से होता है। लेकिन जान तो इंसानों को ही देनी पड़ती है। अगर परमाणु बम की बात करे तो अत्यधिक तापमान उत्पन्न होने के कारण भारी मात्रा में नुकसान उठाना पड़ता है। यह सबसे खतरनाक हथियार है। रसायनिक हथियार विभिन्न प्रकार के जहरीली रसायनों से बनी होती है। इसका प्रयोग जिस स्थान पर किया जाता है वहां भी बड़ी मात्रा में मौते होती है। इसे आप इस प्रकार से समझ सकते हैं। जैसे की हमलोग अपने खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करते है जिससे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटाणु मारे जाते हैं। ये कीटनाशक रसायनिक पदार्थ ही होते है। इसी प्रकार रसायनिक हथियार के कारण इंसानों कि मौत होती है। इसमें भी कीटनाशकों की तरह जहरीली रसायनों का प्रयोग होता है। हम आपको ऐसे ही रसायनिक हथियारों में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के बारे में बता रहे हैं-

सारिन
वर्तमान में सारिन को सबसे खतरनाक तंत्रिका जहर (Nerve Gas) माना जाता है।  1938 में गेरहार्ड श्रेडर समेत कुछ जर्मन वैज्ञानिकों ने सारिन को बनाया था। इसे कीटनाशक के रूप में हानिकारक कीटों को मारने के लिए बनाया गया था। रासायनिक रूप से यह दूसरे तंत्रिका जहर ताबुन और वीएक्स की तरह ही है। तरल रूप में यह गंधहीन और रंगहीन होता है। वाष्पशील होने के कारण यह आसानी से गैस में बदल जाता है। यह बेहद अस्थिर होता है इस वजह से यह जल्दी ही नुकसानरहित यौगिकों में बदल जाता है। सारिन की एक छोटी सी मात्रा भी घातक हो सकती है। गैस मास्क और पूरे शरीर को ढंकने वाली कपड़े इससे बचा सकती है। यह आंखों और त्वचा के रास्ते भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह तंत्रिकाओं के आवेग लगातार भेजता रहता है जिसके कारण नाक और आंख से पानी गिरने लगता है, मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है और इन सबके बाद आखिर में मौत हो जाती है।

ताबुन
गेरहार्ड श्रेडर ने ही 1936 में ताबुन की खोज की थी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बमों में रासायनिक हथियार भर दिए जाते थे। हालांकि इन बमों का इस्तेमाल कभी नहीं हुआ। तरल रूप में ताबुन फल जैसी खुशबू देता है,  जैसे कि कड़वे बादाम की तरह। गैस त्वचा के संपर्क में आने पर या फिर सूंघने पर नाक के जरिए शरीर में चली जाती है. इसका असर और लक्षण खतरनाक सारिन जैसा ही है।

वीएक्स
सारिन की तरह वीएक्स को भी कीटनाशक के रूप में ही तैयार किया गया था। ब्रिटिश के केमिस्टों ने इसे कीटनाशक बनने के उद्देश्य से तैयार किया था। बाद में उन्हें पता चल गया कि खेती में इस्तेमाल करने के लिहाज से यह ज्यादा खतरनाक है। इसके घातक परिणाम ने भविष्य के रासायनिक हथियार के रूप में दे दिया। वीएक्स का असर और लक्षण तो सारिन और ताबुन की तरह ही होता है लेकिन यह उनकी तुलना में ज्यादा स्थायी और कईगुना जहरीला होता है। यह तैलीय होता है। स्थिरता के कारण वीएक्स त्वचा, कपड़े और दूसरी चीजों से चिपक जाता है और लंबे समय तक चिपका ही रहता है जिससे यह अधिक समय तक प्रभाव डालते रहता है।

मस्टर्ड गैस
मस्टर्ड गैस का पहली बार इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध में  हुआ था।  हालांकि युद्ध से बहुत पहले ही इसके साथ प्रयोग किए जा चुके थे। जर्मन के केमिस्ट विलहेम लोमेल और विलहेम स्टाइंकोपिन ने 1916 में हथियार के रूप में इसके इस्तेमाल की सलाह दी थी। रासायनिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होने वाले दूसरे गैसों की तरह इसे महाविनाश का हथियार आधिकारिक रूप से नहीं माना गया है। मस्टर्ड  गैस कपड़ों को छेद कर त्वचा में समा जाती है। इसके संपर्क में आने के 24 घंटे बाद ही असर दिखना शुरू होता है। गैस के असर से पहले त्वचा लाल हो जाती है। फिर फफोले निकलने लगता हैं। जैसा कि आपने कई फिल्मों में देखा होगा। इसके बाद वहां की त्वचा छिलके की तरह उतर जाती है। नाक के रास्ते से अंदर गई गैस जानलेवा हो सकती है क्योंकि यह फेफड़ों के उत्तकों को नुकसान पहुंचाती है।
     इस प्रकार के रसायनिक हथियारों पर पूरी दुनिया में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रतिबंध लगाया जा चुका है। फिर भी कुछ देशों में इसका इस्तेमाल कभी कभी कर लिया जाता है। यह हथियार अगर किसी देश के पास हो तो इससे खतरा थोड़ा कम होता है क्योंकि सरकार इसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध के कारण नहीं कर सकती लेकिन सबसे अधिक खतरा आतंकवादियो और तानाशाहों से होता है। इनपर कोई अंतरराष्ट्रीय नियम लागू नहीं होता है।
रासायनिक हथियार निषेध संगठन (Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons, OPCW) संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समर्थित एक संस्था है जो दुनिया भर में रासायनिक  हथियारों को नष्ट करने और उनकी रोकथाम के लिए काम करती है। वर्तमान में यह संस्था सीरिया में रसायनिक हथियारों को ख़त्म किए जाने का काम देख रही है। नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने 2013 का शांति पुरस्कार इस संस्था को दिया है। 
हालांकि रसायनिक हथियार का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के सभी हथियारों का प्रयोग विज्ञान का गलत प्रयोग करने जैसा है।

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